मिलिए बाबा सियाराम से मकर संक्रांति स्पेशल स्टोरी

उम्र लगभग 100 बरस लेकिन 24 घंटे में से करीब 21 घंटे बगैर चश्मे के रामायण का पाठ ,तन पर कपड़े के नाम पर केवल एक लंगोट कड़ाके की ठंड हो बरसात हो या फिर भीषण गर्मी लंगोट के अलावा कुछ नहीं ये है बाबा सियाराम नर्मदा किनारे आश्रम में रहने वाले बाबा सियाराम की कहानी

मकर संक्रांति में हम लेकर आपके सामने आए हैं त्याग और तपस्या की जीती जागती तश्वीरें है बाबा सियाराम की खरगोन जिला मुख्यालय से 65 किमी दूर कसरावद विकासखण्ड के भटयान गांव जो नर्मदा नदी के तट में बसा है यहां पर एक सियाराम आश्रम है जो बाबा सियाराम के नाम से ही जाना जाता है बताया जाता है कि बाबा 1955 के आसपास यंहा पर आए थे नर्मदा नदी के पास ही आश्रम बनवाया और तब से यही पर रह रहे हैं नर्मदा तट पर आने वाले श्रद्धालु तपस्वी बाबा के दर्शन करना नहीं भूलते हैं यहां पर मध्यप्रदेश के अलावा तीन राज्यों महाराष्ट्र राजस्थान गुजरात के लोग बड़ी संख्या में बाबा के दर्शन के लिए आते हैं

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महज दस रुपए की चढ़ोत्तरी

देश में मंदिरों में चढोत्तरी के लिए कोई नियम नहीं है लेकिन यहां पर बाबा ने नियम बना दिया है कि जो भी श्रध्दालु आएगा वह दस रूपये से ज्यादा दान नहीं देगा कमाल तो यह है कि अगर किसी ने बड़ा नोट चढ़ाया तो दस रुपए काटकर बाकि का वापिस कर दिया जाता है आश्रम में प्रतिदिन मेरे जैसा माहौल बना रहता है आश्रम के लोग बताते हैं कि बाबा की उम्र तकरीबन सौ वर्ष हो चुकी है फिर भी बिना चश्मे के रामायण का पाठ करते हैं मौसम कोई सा भी हो तन पर सिर्फ लंगोट धारण करते हैं मकर संक्रांति के दिन भी प्रदेश के अलग अलग नर्मदा घाटों में लगे मेलों से कहीं ज्यादा श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए पहुंचे हैं

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