जानिए मंडला के अनोखे बांध को जो 7 सालों से बन रहा

जिसकी नींव विकास और उम्मीदों के साथ रखी गई थी, ताकि क्षेत्र के सूखे पड़े बड़े हिस्से को हरा-भरा किया जा सके। मंडला के अनोखे बांध को जलसंसाधन विभाग में बैठे काबिल लोग बीते सात सालों से बना रहें हैं न बांध
बन पा रहा है और न नहर बन पा रही है जिसके इंतजार में हैं हजारों किसान।

मंडला के अनोखे बांध से 1105 हेक्टेयर जमीन होती सिंचित

मंडला जिले के निवास में गौर नदी में बनने वाले गौर बांध की स्वीकृति 2015-16 में 34 करोड़ 35 लाख 75 हजार थी जिसमें बांध के साथ निवास के ऊपरी क्षेत्र में सिंचाई के लिए खेतों तक पानी उपलब्ध कराने के लिए नहर का निर्माण होना था। बांध निर्माण से 1105 हेक्टेयर जमीन सिंचित होती अनुमान लगाया गया था कि यह परियोजना 2 वर्षों में पूरी हो जाएगी और हजारों किसानों की जिंदगी बदल देगी।
बीते सात सालों में जैसे तैसे बांध की दीवार नदी के दोनों तटों की तरफ बनी है दूसरी तरफ नहरों का कुछ निर्माण हुआ उसके बाद निर्माण बंद हो गया लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि निर्माण आखिर बंद क्यों हुआ। सात साल का समय किसी भी निर्माण परियोजना के लिए काफी होता है। यह बांध देरी, अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की कहानी बनकर रह गया है। मंडला के अनोखे बांध को और क्या उपाधी दें।

जानिए मंडला के अनोखे बांध को जो सात सालों से बन रहा

बांध निर्माण में शुरुआती दिक्कतें

पहले दो सालों में ही यह परियोजना बाधाओं में घिर गई। जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में देरी हुई, बांध निर्माण का ठेका लेने वाली कंपनी में एक से अधिक पार्टनर थे जिनमें कुछ समय के बाद मनमुटाव बढ़ा जिससे काम प्रभावित हुआ , निर्माण के समय वन विभाग की आपत्ति और बजट आवंटन में समस्या इन कारणों से बांध की अवधि बढ़ती गई।

mandla ka anokha bandh
file photo gour bhandh

बांध निर्माण के दौरान जब कंपनी के हिस्सेदार काम छोड़कर जा रहे थे उसी समय विभाग के जिम्मेदार भी चुपके से अपना स्थानांतरण करा लिए ठेकेदार और विभाग के लोगों का भागना बहुत कुछ बताता है इस बांध में कुछ तो ऐसा है जिसके कारण सब ख़ामोश है। कोई नही जानता है कि बांध के निर्माण में अब तक कितनी राशी खर्च कर दी गई है पूरी संभावना है कि सब कुछ बंदरबांट हो चुका है।आज, सात साल बाद, यह बांध एक अधूरी संरचना के रूप में खड़ा है। आसपास के किसान और स्थानीय लोग इसे केवल एक “सरकारी वादे का स्मारक” मानते हैं।

निष्कर्ष:
यह बांध केवल पानी या सिंचाई का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सिस्टम की खामियों और प्रशासनिक कुप्रबंधन का प्रतीक बन चुका है। क्या यह बांध कभी पूरा होगा, या यह केवल एक और अधूरी परियोजना बनकर रह जाएगा? इसका जवाब किससे मिलेगा और पढ़िए

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