यूं तो भारत में तेजी से लोग डिजिटल क्रांति की ओर जा रहे हैं दूसरे तरफ एक दूसरी दुनिया ज़हां लोग अधंविश्वास के अंधेरे में आज भी फंसे हुए हैं सरकार हो या प्रशासन लगातार प्रयास करते रहें हैं कि अंध विश्वास के कैसे अंधेरे से किसी तरह लोगों को बाहर निकालें लेकिन शासन प्रशासन की एक चूक भी कई बार लोगों को अंधविश्वास के अंधेरे में ले जाने को मजबूर कर देती है
ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश के शहडोल में होता दिख रहा है यहां पर तीन माह की बच्ची का दो दिन पहले मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मौत हो गई थी जिसमें पता चला था कि मासूम को दगना प्रथा के दर्दनाक तरीके से गुजरना पड़ा था मासूम के पेट में गर्म सरिया से 51 बार दागा गया था जबकि आंख के पास दो बार दागा गया था इस खबर ने पूरे प्रदेश में सुर्खियां बटोरी थी जिसे स्थानीय प्रशासन पर सवाल भी उठे थे क्योंकि प्रशासनिक अधिकारियों के बयान में विरोधाभास साफ दिख रहा था अब एक बार फिर एक निर्णय ने कई सवाल उठा दिए हैं
शहडोल के कठौतिया गांव में दगना प्रथा के चलते तीन माह की बच्ची के शरीर में गर्म सरिया दागने के बाद जब मासूम की तबीयत नहीं ठीक हुई तो शहडोल में इलाज कराने भर्ती कराया गया था ज़हां दो दिन पहले मासूम की मौत हो गई थी जिसको परिवार ने दफना दिया था शुक्रवार को प्रशासन ने अचानक मासूम के शव को कब्र से बाहर निकाला है बताया जा रहा है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ और प्रशासन के अधिकारियों के बयान पर विरोधाभास था
इसलिए मासूम की मौत की सही वजह जानने के लिए शव का परिक्षण कराया गया है शुक्रवार को रात को अचानक शव को निकाला कर पोस्टमार्टम कराया गया है जिससे कई सवाल भी उठ रहे हैं अगर पहले ही यह सब कर लिया जाता तो मासूम के मौत की सही वजह तो पता होता जिले में दगना प्रथा का प्रचलन जोरों पर है अनुमान है कि दो हजार से ज्यादा बच्चे अब तक इस कुप्रथा का शिकार हो चुके हैं वहीं परिवार के लोगों ने स्वीकार किया है कि उनके व्दारा इस प्रथा का पालन किया गया था इसके साथ ही प्रशासन के सारे दावों की भी पोल खोल दी है परिवार के सदस्यों ने बताया कि गांव में अस्पताल तो है लेकिन वहां कोई सुविधा नहीं है और न ही कोई नर्स है तीन माह पहले यहां पर पदस्थ नर्स को शहर भेज दिया गया था
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